BPSC CONCEPT WALLAH

सचिवालय गोलीकांड का इतिहास l जानिए सच क्या है l

ढलती शाम की फीकी सुनहली आभा भूरी मूर्तियों पर उतर आई थी। पेड़ों के साये लंबे हो सड़क पर बिछ गए थे। वह देर तक उन मूर्तियों को देखते रहे। उनके अंदर की पीड़ा चेहरे पर तैर आई। उन्हें एक-एक कर सात किशोर गोलियों से धराशायी होते नजर आ रहे थे। उनकी आंखें नम हो गईं। दुनिया उन्हें ही इन किशोरों का हत्यारा समझती है, पर सच कुछ और था। 11 अगस्त 1942 को पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के दौरान जिसके आदेश पर वे किशोर गोलियों का निशाना बने थे, वह आदेश उनका नहीं, किसी और का था।

वह आगे बढ़े और पटना रेलवे स्टेशन से ख़रीदे गए फूलों को स्मारक पर रख दिया। फिर पत्नी के कंधों का सहारा लेकर बोझिल क़दमों से चलकर सड़क पर खड़ी गाड़ी में जा बैठे। वहां से लौटकर उन्होंने अपने मेजबान, भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी से कहा, ‘मैंने एक सपना देखा था कि इन खो गई नन्हीं आत्माओं की स्मृति को शाश्वत बनाऊं। लेकिन बिहार सरकार ने जो स्मारक बनवाया है, वह इतना संपूर्ण है कि मैं उन्हें देखकर अभिभूत हो गया। मैं उन किशोरों के मृत शरीर को देख कर रोया था, आज तक रोता हूं।’

यह डब्ल्यू. जी. आर्चर थे। 1942 आंदोलन के दौरान पटना में 11 अगस्त को सचिवालय पर झंडा फहराने के प्रयास में जो सात किशोर शहीद हुए, उसके लिए जिम्मेवार तत्कालीन जिलाधीश आर्चर को माना जाता है। लेकिन बाद में पता चला कि उन शहीदों पर पहली गोली तत्कालीन पुलिस आईजी शील्ड ब्यॉन ने चलाई थी।

सरकारी दस्तावेज़ों और क़िताबों में यही दर्ज है कि गोली चलाने का आदेश आर्चर का ही था। लेकिन सच यह था कि पहली गोली आईजी ने चलाई। यह बात ख़ुद आर्चर ने जिलानी को बताई थी। जिलानी, आर्चर के मातहत पदाधिकारी के रूप में काम कर चुके थे। आज़ाद भारत में जिन दिनों जिलानी वाइस चांसलर थे, उन दिनों ‘कॉमनवेल्थ वाइस चांसलर’ की मीटिंग में शामिल होने उन्हें इंग्लैंड जाना पड़ा। वहां वह आर्चर से भी मिले।

इसके और भी बहुत बाद जब आर्चर पटना आए तो उन्होंने अपने मेजबान भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी को यह जानकारी दी। उन्होंने यह भी बताया कि हंगामे के बीच गोली चलाने का जो आदेश मौखिक रूप में दिया गया, वह तत्कालीन पुलिस आईजी शील्ड का था।

इस घटना के एक चश्मदीद जमील मजहरी ने भी अपने एक अज़ीज़ मासूम रज़ा काजिमी को भी यह बात बताई थी, लेकिन आर्चर ने उदारता दिखाते हुए एक बूढ़े और जल्द रिटायर होने वाले हमवतन पुलिस अधिकारी को बचाने के लिए अपनी रिपोर्ट में उस पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगाया। वैसे, 1942 की इस घटना के बाद शील्ड को रिटायर होना पड़ा और आर्चर को संथाल परगना का डिप्टी कमिश्नर बनाकर भेज दिया गया।

इस घटना के बाद आर्चर की क्रूर अधिकारी की छवि बन गई थी, जो ग़लत है। सच तो यह है कि उन्हें और उनकी पत्नी मिल्ड्रेड आर्चर को भारत और यहां की संस्कृति से गहरा लगाव था। भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास करने के बाद आर्चर ने अपने प्रोबेशन का वक़्त लंदन में स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ में हिंदी सीखने में बिताया। इन्हीं दिनों उनकी भेंट मिल्ड्रेड से हुई। मिल्ड्रेड उनके दोस्त की बहन थी।

मिल्ड्रेड भी 1934 में आर्चर से शादी करने के बाद हिंदुस्तान चली आईं। आर्चर की नियुक्ति संयुक्त बिहार के दक्षिण-पश्चिम सीमा के पास एक ग्रामीण इलाक़े के मुख्यालय गुमला में एसडीओ के पद पर हुई। 1937 में जिलाधीश के पद पर प्रमोशन के बाद उनको दार्जिलिंग के नीचे पूर्वोत्तर बिहार भेजा गया।

हिंदुस्तान में अपनी नौकरी का ज्य़ादातर वक्त़ आर्चर ने बिहार में बिताया। इस दौरान वह मिथिला गए और छोटा नागपुर के पहाड़ी इलाकों में भी। 1934 में आए भीषण भूकंप के दौरान मिथिला में घूमते हुए उन्होंने वहां की चित्रकला देखी। वह उससे बहुत प्रभावित हुए और बाहरी दुनिया का उससे परिचय करवाया। यह पहली बार था जब मिथिला चित्रकला बाहरी लोगों की नज़र में आ सकी।

छोटा नागपुर में रहने के दौरान उन्होंने उरांव, संथाल और आदिवासी समुदाय की कला और संस्कृति के बारे में लिखा। इस विषय पर उनकी तीन क़िताबों ‘वर्टिकल मैन’, ‘ब्लू ग्रोव’ और ‘द डव एंड द लेपर्ड’ का प्रकाशन हुआ। 1940 में उनका तबादला जनगणना आयुक्त के रूप में पटना हो गया। बाद में वह पटना के जिलाधिकारी बने।

यहां आर्चर और मिल्ड्रेड का परिचय पटना के प्रमुख कला संग्राहक और कला पारखी, समृद्ध व्यापारी गोपी कृष्ण कनोडिया और कला इतिहासकार ब्रिटिश अधिवक्ता पीसी मानुक से हुआ। इसके साथ ही उनका परिचय बनारस के भारत कला भवन संग्रहालय के संस्थापक राय कृष्ण दास से भी हुआ, जो बाद के दिनों में उनके गहरे दोस्त हो गए।

मानुक ने मिल्ड्रेड के कला प्रेम को देखते हुए उनका परिचय पटना कलम चित्रशैली के चित्रकारों के वंशज ईश्वरी प्रसाद से करवाया। पीसी मानुक ने मिल्ड्रेड को पटना कलम चित्रशैली पर पुस्तक लिखने को प्रेरित किया। तब मिल्ड्रेड ने ईश्वरी प्रसाद के संस्मरणों के अतिरिक्त और भी शोध करके क़िताब लिखी। आर्चर दंपती ने बड़े पैमाने पर ईश्वरी प्रसाद से पटना कलम की तस्वीरें खरीदीं।

इस बीच 11 अगस्त की घटना हुई। उस घटना ने आर्चर दंपती को हिलाकर रख दिया। आंदोलनकारियों के प्रति आर्चर की सहानुभूति ब्रिटिश सरकार को अच्छी नहीं लगी। सरकार ने आर्चर का तबादला दुमका कर दिया, जो अब झारखंड में है। यहां भी आर्चर दंपती ने आदिवासियों से ढेर सारी कलाकृतियां खरीदीं और उन पर लिखा भी। 1948 में हिंदुस्तान में आर्चर के आख़िरी दो महीने संग्रहालयों में घूमते हुए और अपने कलाप्रेमी मित्रों, राय कृष्ण दास और गोपी कृष्ण कनोड़िया के साथ बीते।

हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद आर्चर इंग्लैंड चले गए। उन्होंने अपना सारा संग्रह इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी एंड विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम को दान में दे दिया। आर्चर विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में इंडियन सेक्शन के देखभाल करने वाले बनाए गए। मिल्ड्रेड को इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी में इंडिया के प्रिंट और ड्राइंग्स सेक्शन का जिम्मा मिला।

आज़ादी के बाद भी आर्चर अक्सर हिंदुस्तान आते रहते थे। उन्हें भारतीय संस्कृति, चित्रकला और कविताओं में महारत हासिल हो गई थी। इन विषयों पर इनकी कई पुस्तकें भी छपीं। इनमें ‘इंडियन मिनिएचर’, ‘इंडिया एंड मॉर्डन आर्ट’, ‘द लव्स ऑफ कृष्णा’, ‘इंडियन पोएट्री‘, ‘कालीघाट पेंटिग्स’ और ‘पेंटिग्स ऑफ सिख्स’ प्रमुख हैं।

आर्चर पहले अंग्रेज़ विद्वान थे, जिन्होंने बर्टन और आरबूथ्राट की अनुदित कामसूत्र के प्रकाशन के लिए एडिटिंग की। उनकी पत्नी मिल्ड्रेड आर्चर भी लेखिका थीं। उनकी रुचि भी भारतीय कला में थी। ‘पटना स्कूल ऑफ पेंटिग’ उनकी एक महत्वपूर्ण क़िताब है।

1956 में शहीद स्मारक बनने के बाद भी वह अपनी पत्नी मिल्ड्रेड के साथ पटना आए थे। शहीद स्मारक के पास घंटों बैठकर वह उन शहीदों की मूर्तियों को देखते रहे थे। 6 मार्च 1979 को आर्चर का देहांत हो गया। मिल्ड्रेड उसके बाद भी काफी दिनों तक ज़िंदा रहीं। उनका निधन 4 फरवरी 2005 को हुआ।

An Article by Vijay Kumar Singh Sir’s Phd Scholar.

Other Free Initiatives
Catch Initiative- Daily Mains Answer Writing
Daily Static Quiz
Daily Current Affairs Quiz
Daily Intro-Conclusion Series
×