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News in Focus: देश की जीवनरेखा: रेलवे की दशा और दिशा

*चर्चा में क्यों?-:

 ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे ने रेलवे की सुरक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए है।भारतीय रेलवे रोज औसतन 2 करोड़ से अधिक लोगों को मंजिल तक पहुंचाती है। लिहाजा इस प्रकार के हादसे आम जनमानस में रेलवे सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल पैदा कर सकते हैं । इक्कीसवीं शताब्दी के विज्ञान के युग में सिग्नल की चूक से तकरीबन तीन सौ निर्दोष लोग मौत के मुंह में चले जाएं, इससे दुर्भाग्यपूर्ण कुछ नहीं हो सकता। एक ओर हम आधुनिकतम तकनीकों और ऑपरेटिंग सिस्टम से लैस हाई स्पीड ट्रेनों के बाद बुलेट ट्रेन के युग में पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं, दूसरी ओर ट्रेनों के सफर को अब तक पूर्णत: निरापद और सुरक्षित नहीं बनाया जा सका है।

*रेलवे की सुरक्षा प्रणाली कितनी दुरूस्त ?-:

हाल के दिनों में आम लोगों में यह राय बनी है कि सरकार स्पीड बढ़ाने और नई-नई ट्रेनें शुरू करने पर जितना ध्यान दे रही है, उतना कमजोर और पुराने पड़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर नहीं दिया जा रहा। हालांकि रेलवे डिपार्टमेंट आंकड़ों के जरिए इस धारणा का खंडन करता है। उसके मुताबिक 2017-18 में एक लाख करोड़ रुपये का पंचवर्षीय सुरक्षा कोष बनाया गया था, जिसे 2022-23 में 45000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम के साथ एक्टसटेंड कर दिया गया।

सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि दोषियों को सख्त सजा दी जाएगी लेकिन रेल मंत्रालय का शीर्ष नेतृत्व क्या अपनी जवाबदेही से मुक्त हो सकता है? क्या राजनीतिक नेतृत्व में लाल बहादुर शास्त्री जैसी नैतिकता के अनुसरण का साहस नहीं होना चाहिए? 

कैग रिपोर्ट 2021 में कहा गया है कि “राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष” का 20% गैर-सुरक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया था और पर्याप्त राशि का उपयोग नहीं किया गया था?

रेल नेटवर्क का केवल 2% यानी 68,000 किलोमीटर रेलवे नेटवर्क में से 1,450 किलोमीटर कवच द्वारा कवर किया गया है?कवच नामक “ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली – टीसीएएस” को सभी रेलवे क्षेत्रों में क्यों लागू नहीं किया गया है?

एक आंकड़ा बताता है कि देश में पिछले 23 सालों में 1000 से ज्यादा लोगों की ट्रेन दुर्घटना में मौत हुई है। सिर्फ मौत का आंकड़ा बदला है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही समान रूप से देखने को मिली है। ओडिशा वाले हादसे में भी उस लापरवाही से मुंह नहीं फेरा जा सकता, कोई भी ये बात नहीं समझ पा रहा है कि आखिर तीन ट्रेनों की टक्कर कैसे हो गई? जब एक ट्रेन की बोगियां पहले से पटरी पर गिरी हुई थीं, दूसरी ट्रेन को उसी ट्रैक पर आने की इजाजत कैसे मिल गई? सवाल अनेक हैं, लेकिन अभी तक क्योंकि जांच नहीं हुई है, ऐसे में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

* देश की लाइफलाइन है भारतीय रेलवे –

आज, भारतीय रेलवे के पास 67,000 किमी से अधिक में फैले दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है।  यह विभिन्न क्षेत्रों, राज्यों और शहरों को जोड़ता है, जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को यात्रा के किफायती और कुशल साधन प्रदान करता है। इसके पास 64,000 किलोमीटर लंबा रेल मार्ग है, जिंसमें बड़ी लाईन (52,808 किलोमीटर), मीटर गेज लाइन (8,473 किलोमीटर) और छोटी लाइन (2,734 किलोमीटर) शामिल हैं।

भारतीय रेलवे देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  यह कच्चे माल, माल और तैयार उत्पादों के परिवहन, देश भर के उद्योगों के लिए एक जीवन रेखा के रूप में कार्य करता है।  माल ढुलाई की कुशल आवाजाही व्यवसायों को उनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को अनुकूलित करने, परिवहन लागत को कम करने और अप्रयुक्त बाजारों तक पहुँचने में मदद करती है।  

 भारतीय रेलवे ने अपनी सेवाओं और संचालन को बढ़ाने के लिए तकनीकी प्रगति को अपनाया है।  ऑनलाइन टिकटिंग सिस्टम, मोबाइल एप्लिकेशन और रीयल-टाइम सूचना अपडेट ने यात्रियों के लिए टिकट बुकिंग और यात्रा योजना को और अधिक सुविधाजनक बना दिया है।  जीपीएस, वाई-फाई कनेक्टिविटी और बायो-टॉयलेट जैसी आधुनिक तकनीकों का एकीकरण यात्रा के अनुभव को और बेहतर बनाता है और टिकाऊ प्रथाओं को सुनिश्चित करता है।

भारतीय रेलवे को अक्सर राष्ट्र की जीवन रेखा कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय रेलवे न सिर्फ यात्रियों और सामानों का परिवहन करता है बल्कि पूरे देश को भी एक सूत्र में जोड़ता है। 

*रेल दुर्घटनाओं के कारण –

रेल हादसों की मुख्य वजह इसका पुराना सिस्टम है, जिसे पूरी तरह ठीक करने और व्यापक पैमाने पर आधुनिकीकरण किए जाने की ज़रूरत है | रेलवे के लिए यह मुमकिन नहीं है कि वह इसे तुरंत दुरुस्त कर सके।

यह विडंबना है कि पटरी से उतरती ट्रेनों का यह सिलसिला दशकों से जारी है। हम पिछले हादसों से कोई सबक नहीं लेते हैं। बीते दशकों में राजनीतिक दलों में रेल मंत्रालय लेने की होड़ रहा करती थी ताकि उसके जरिये राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति की जा सके।

गाहे-बगाहे तेज गति की ट्रेन चलाने और निजीकरण को बढ़ावा देने की बात होती रही है। निश्चित रूप से नये प्रयोगों से केंद्रीय संचालन की कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। दरअसल, पूरे देश का रेल तंत्र सुनियोजित और सुरक्षित संचालन की मांग करता है। किसी तरह का विकेंद्रीयकरण इस मार्ग में विसंगतियां पैदा कर सकता है। 

साथ ही रेलवे के पास, अपने रेल ट्रैक और इसकी पूरी प्रणाली के परीक्षण और निगरानी की व्यवस्था नहीं है | इसके अलावा आंतरिक प्रणाली भी ऐसी नहीं है जिससे हादसे का पता तुरंत लग जाए ताकि उससे होने वाले नुक़सान को कम किया जा सके |

 यह विचित्र संयोग है कि रेल बजट के अस्तित्व के दौरान सुरक्षा और संरक्षा के मुद्दे पर रेल मंत्रियों को सबसे अधिक आलोचना का शिकार होना पड़ा था। रेल बजट और आम बजट के समाहित होने के बाद यह बदलाव हुआ है। रेल बजट को आम बजट में समाहित करने के पैरोकार रहे पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु को खुद अपना मंत्री पद रेल दुर्घटनाओं के नाते छोड़ना पड़ा। यही नहीं, लाल बहादुर शास्त्री जैसी महान हस्ती को भी रेल मंत्री का पद नैतिक आधार पर रेल दुर्घटना के नाते त्यागना पड़ा था। 

*रेलवे का कवच प्रोटेक्शन सिस्टम क्या है? -:

कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, जिसे भारतीय रेलवे ने RDSO (रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन) के जरिए विकसित किया है। इस सिस्टम पर रेलवे ने साल 2012 में काम करना शुरू किया था। उस वक्त इस प्रोजेक्ट का नाम Train Collision Avoidance System (TCAS) था।

इस सिस्टम को विकसित करने के पीछे भारतीय रेलवे का उद्देश्य जीरो एक्सीडेंट का लक्ष्य हासिल करना है। इसका पहला ट्रायल साल 2016 में किया गया था। पिछले साल इसका लाइव डेमो भी दिखाया गया था।

यह भारत की अपनी स्वचालित सुरक्षा प्रणाली है, जो ट्रेन कोलिज़न बचाव प्रणाली (Train Collision Avoidance System-TCAS) के नाम से वर्ष 2012 से विकासशील है, जिसे Armour या “कवच” नाम दिया गया है।

यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) उपकरणों का एक सेट है जो लोकोमोटिव तथा सिग्नलिंग सिस्टम के साथ-साथ पटरियों में भी स्थापित होता है।

वे ट्रेनों के ब्रेक को नियंत्रित करने के लिये अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रीक्वेंसी का उपयोग करके एक-दूसरे से जुड़ते हैं तथा ड्राइवरों को सतर्क भी करते हैं, ये सभी प्रोग्राम के आधार पर होते हैं।

TCAS या कवच में यूरोपीय ट्रेन सुरक्षा एवं चेतावनी प्रणाली, स्वदेशी एंटी कोलिज़न डिवाइस जैसे परीक्षण किये गए प्रमुख घटक पहले से ही शामिल हैं।

इसमें भविष्य में हाई-टेक यूरोपीय ट्रेन कंट्रोल सिस्टम लेवल-2 जैसी विशेषताएँ भी होंगी।

*कैसे काम करता है कवच?-

ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस (How Kavach Works) का सेट है। इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है। ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है। 

जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है। इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है। जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है। सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है।

अब इस पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं। इस टेक्नोलॉजी की वजह से जैसे ही दो ट्रेन एक ही ट्रैक पर आ जाती हैं, तो एक निश्चित दूरी पर सिस्टम दोनों ही ट्रेनों को रोक देता है।

*कवच को चरणबद्ध तरीके से लागू करना चाहती है सरकार-: 

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि भारतीय रेलवे की दुर्घटना रोधी प्रणाली ‘कवच’ को चरणबद्ध तरीके से देश भर में लागू किया जा रहा है। आरडीएसओ यानी रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन के प्लान के तहत दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,455 रूट किलोमीटर पहले ही कवर किए जा चुके हैं। देश भर में इस संगठन की तरफ से तेजी से चल रहा है।

दरअसल देश में रेल मार्गों पर दुर्घटनाओं से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने 34,000 किलोमीटर रेल मार्ग के साथ कवच प्रौद्योगिकी को मंजूरी दी थी। इसका लक्ष्य मार्च 2024 तक देश की सबसे व्यस्त ट्रेन लाइनों पर कवच प्रौद्योगिकी स्थापित करना है. कवच की अनूठी विशेषता यह है कि इसका उपयोग करने से ट्रेनें आमने-सामने या पीछे से नहीं टकराती। कवच ऐसी परिस्थितियों में ट्रेन को अपने आप पीछे की ओर ले जाता है।

अगर दावों की मानें तो जब कोई ट्रेन सिग्नल जंप करती है, तो 5 किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी ट्रेनों की मूवमेंट रुक जाएगी। दरअसल, इस कवच सिस्टम को अभी सभी रूट्स पर इंस्टॉल नहीं किया गया है। इसे अलग-अलग जोन में धीरे-धीरे इंस्टॉल किया जा रहा है।पिछले साल रेलवे ने नई सुरक्षा प्रणाली ‘कवच’ शुरू की थी। दावा किया गया था कि रेल मार्गों को इस प्रणाली से लैस करने के बाद ट्रेनों की टक्कर को टाला जा सकेगा। रेलवे के मुताबिक, हादसे रोकने के लिए यह ऑटोमेटिक ट्रेन सिक्योरिटी सिस्टम के तहत विकसित सबसे प्रभावी और सस्ती प्रणाली है। इस प्रणाली में दो ट्रेनों के आमने-सामने होने पर इंजन में स्वत: ब्रेक लगने लगते हैं, ट्रेनों की निर्धारित रफ्तार की निगरानी होती है और रेलवे फाटक से एक किलोमीटर पहले ही ट्रेन का हॉर्न बजने लगता है। रेल मार्गों को ‘कवच’ से लैस करने के काम में तेजी लाने की जरूरत है। अब तक 1500 किलोमीटर रेल मार्ग ही इस प्रणाली से जुड़ पाए हैं। उस मार्ग पर फिलहाल ‘कवच’ नहीं है, जहां हादसा हुआ।

* विवेक देवराय समिति-:

भारतीय रेलवे में सुधार हेतु वर्ष 2014 में बिबेक देबरॉय समिति का गठन किया गया था। रेलवे में सुधारों के लिए अर्थशास्त्री डा- बिबेक देबरॉय की अध्यक्षता में गठित 6 सदस्यीय उच्च-स्तरीय समिति ने 12 जून 2015 को अपनी रिपोर्ट रेलवे मंत्रलय को सौंप दी। पेश रिपोर्ट में रेलवे की हालत सुधारने के लिए निजी क्षेत्र के योगदान की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

रिपोर्ट में निजी क्षेत्र को यात्री ट्रेन और मालगाड़ी चलाने की अनुमति देने की सलाह दी गई है और कहा गया है कि रेलवे को अपना काम नीतियां बनाने तक सीमित रखना चाहिए।

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में रेलवे बोर्ड की भूमिका सीमित करने, मानव संसाधन के कार्य को अच्छा करने तथा रेलवे के कामकाज के लिए व्यावसायिक लेखा प्रणाली शामिल करने संबंधी कुछ सिफारिशें की हैं।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा है कि रेलवे को स्कूल और अस्पताल चलाने जैसे कल्याणकारी कामों और आरपीएफ के प्रबंधन से अलग हो जाना चाहिए। यह नीति निर्माण, नियमन और संचालन की भूमिका विभाजित करने के लिए आवश्यक है। भारत सरकार और रेलवे संगठनों के बीच जिम्मेदारी का स्पष्ट विभाजन होना चाहिए।

* रेलवे में सुधार के लिए बनी अन्य समितियाँ

रेलवे में सुधार के लिए गठित विभिन्न समितियों ने सेवाओं के एकीकरण की सिफारिश की थी जिनमें प्रकाश टंडन समिति (1994), राकेश मोहन समिति (2001), सैम पित्रोदा समिति (2012) और बिबेक देबरॉय समिति (2015) शामिल हैं। ध्यातव्य है कि बिबेक देवरॉय समिति ने सुझाव दिया था कि ग्रुप ए की सभी सेवाओं को दो भागों- तकनीकी और गैर तकनीकी में विभाजित किया जाए।

*रेल सुरक्षा को बढ़ावा देने के उपाय-:

रेल ट्रैफिक को कम करने तथा ट्रैक पर से दबाव हटाने के लिये सिंगल लाइनों को डबल या फोरलेन में बदलने के काम को गति देनी चाहिये, विशेषकर उन रेलखंडों में जहाँ यात्रियों और माल आवाजाही का अत्यधिक दबाव है।  मानवीय चूक को कम करने के लिये प्रशिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ तकनीक का भी इस्तेमाल बढ़ाना होगा। साथ ही लापरवाही के मामलों में कठोर विभागात्मक कार्यवाही सुनिश्चित करनी होगी।

रेलवे ट्रैक की मरम्मत और निगरानी हेतु विशेष तंत्र की आवश्यकता है, मौजूदा प्रणाली उतनी कारगर सिद्ध नहीं हो पा रही है। रेल प्रबंधन को श्रम-बल में वृद्धि और उपकरणों के आधुनिकीकरण हेतु वित्त की व्यवस्था के लिये किराए में वृद्धि के अलावा भी और दूसरे उपाय खोजने होंगे।

रेल सुरक्षा व चेतावनी प्रणाली (TPWS) व टक्कर रोकने हेतु Train Collision Avoidance System, पूरे रेल नेटवर्क में स्थापित करने होंगे। 

रेलवे की सुरक्षा पर बड़ी राशि खर्च करने पर भी दुर्घटनाओं का शिकार हुए लोगों के जीवन को नहीं बचाया जा सकता। अतः इसके लिये सावधानी और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।

रेलवे में प्रौद्योगिकी उपयोग को बढ़ावा देना एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। गाड़ियों में स्थान की कमी यात्रियों में लगातार असंतोष का कारण है। इसके साथ-साथ गाड़ी के समय पालन तथा गुणवत्ता में सुधार की भी आवश्यकता है। टिकट और आरक्षण के लिये यात्रियों को सुविधा आसानी से उपलब्ध करानी होगी।

रोजाना दो करोड़ से ज्यादा लोगों को सफर कराने वाली भारतीय रेल के लिए सुरक्षा का मोर्चा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। हमारी प्राथमिकता ऐसे रेल संचालन की होनी चाहिए कि उसमें दुर्घटना की कोई गुंजाइश न हो। दोषियों को ऐसी सख्त सजा दी जानी चाहिए कि वो नजीर बन सके। ताकि फिर कोई चूक सैकड़ों लोगों की जान न ले सके। सस्ती रेल सेवा के बजाय ऐसी फुलप्रूफ सुरक्षा होनी चाहिए कि तमाम यात्रियों के जीवन की रक्षा हो सके। निश्चित रूप से अब देश के रेलतंत्र को लापरवाही व गैरजिम्मेदारी की संस्कृति से मुक्त करने की जरूरत है।

गाड़ियों में गुणवत्तापूर्ण भोजन की सप्लाई, स्टेशनों, सवारी डिब्बों, शौचालयों की सफाई, नियमित और समय पर जन-उद्घोषणा सुनिश्चित करना तथा सटीक पूछताछ सेवा जैसे कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ हमें सभी स्तरों पर ध्यान देना होगा। भारतीय रेल का वास्तविक और वित्तीय लक्ष्य प्राप्त कर लेना ही उद्देश्य नहीं है बल्कि रेलवे द्वारा मुहैया कराई गई सेवा की असली परीक्षा इस बात में है कि नागरिक और ग्राहक उसे किस रूप में देखते हैं।

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