भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – एक अनिवार्य लोकतांत्रिक अधिकार

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भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – एक अनिवार्य लोकतांत्रिक अधिकार

परिचय
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मामला खारिज कर दिया। उन पर “प्रेम से अन्याय सहने” वाली कविता के माध्यम से वैमनस्य फैलाने का आरोप था। यह फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को फिर से स्पष्ट करता है और यह बताता है कि एक स्वस्थ लोकतंत्र में असहमति, व्यंग्य और रचनात्मक अभिव्यक्ति कितनी जरूरी है।

संवैधानिक प्रावधान और न्यायिक दृष्टिकोण

  • अनुच्छेद 19(1)(a) हर नागरिक को बोलने और अपनी बात कहने की आज़ादी देता है।
  • अनुच्छेद 19(2) के तहत कुछ उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जैसे:
    • भारत की संप्रभुता और एकता की रक्षा
    • राज्य की सुरक्षा
    • सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना
    • शालीनता और नैतिकता
    • अदालत की अवमानना
    • मानहानि
    • अपराध के लिए उकसाना
    • विदेशी देशों से अच्छे संबंध बनाए रखना
  • रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य (1950) और श्रेय सिंघल बनाम भारत संघ (2015) मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल वही भाषण रोके जा सकते हैं जो स्पष्ट और गंभीर खतरा पैदा करते हों।

निर्णय से मुख्य बातें

  • कोर्ट ने कहा कि स्टैंड-अप कॉमेडी, कविता, थिएटर और व्यंग्य जैसे माध्यम जनता की अभिव्यक्ति के वैध रूप हैं और इन्हें सिर्फ इसलिए अपराध नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे कुछ लोगों को पसंद नहीं आए।
  • न्यायमूर्ति भुयान ने कहा कि “उचित प्रतिबंध वास्तव में उचित ही होने चाहिए”, न कि दबाव का साधन।
  • न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि राज्य को उन लोगों की असुरक्षा की भावना के आधार पर आलोचनात्मक विचारों को दबाना नहीं चाहिए।

कानूनी दुरुपयोग और अतिरेक की समस्या

  • इस मामले में भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 के तहत “धार्मिक या जातीय मतभेद फैलाने” का आरोप था।
  • कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत और कलात्मक अभिव्यक्ति को अपराध ठहराना उचित नहीं है, खासकर भारत जैसे विविधता वाले देश में।
  • कोर्ट ने यह भी कहा कि एक कविता जो अहिंसा और सहनशीलता की बात करे, उसे नफरत फैलाने वाला भाषण नहीं कहा जा सकता।

राजनीतिक माहौल में इसका महत्व

  • हाल के वर्षों में असहमति और आलोचना के प्रति सहनशीलता कम हुई है।
  • देशद्रोह कानून (अब समाप्त) और UAPA जैसे कानूनों का दुरुपयोग हुआ है।
  • यह फैसला ऐसे गलत और राजनीतिक रूप से प्रेरित मामलों पर लगाम लगाने का काम करता है।

आगे की दिशा

  • पुलिस और प्रशासन को किसी भी व्यक्ति पर बोलने से जुड़ा मामला दर्ज करने से पहले सख्त और निष्पक्ष मानदंड अपनाने चाहिए।
  • अदालतों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि कविता, व्यंग्य और कला को कैसे समझा जाए।
  • भारत को एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहाँ विचारों पर चर्चा हो — चाहे वे कितने भी असहज क्यों न हों — उन्हें दबाया न जाए।

निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय हमें एक पुराना और सच्चा सबक याद दिलाता है — अभिव्यक्ति की आज़ादी लोकतंत्र की आत्मा है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में असहमति, व्यंग्य और आलोचना की आवाज़ों को सम्मान और संरक्षण मिलना चाहिए।

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