भारत की भू-राजनीतिक दृष्टि अधिक व्यापक होनी चाहिए
परिचय: वैश्विक राजनीति में भारत की चुप्पी
- रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यूक्रेन-रूस युद्ध में शांति प्रयास के लिए आभार प्रकट किया।
- इससे प्रश्न उठता है: भारत वैश्विक और क्षेत्रीय संघर्षों में अधिक राजनीतिक भूमिका क्यों नहीं निभाता?
- यह हैरानी की बात है, क्योंकि भारत का ऐतिहासिक रिकॉर्ड निर्णायक क्षेत्रीय हस्तक्षेपों का रहा है।
भारत की ऐतिहासिक भूमिका
- 1971 (बांग्लादेश मुक्ति): भारत ने नरसंहार को रोका और एक नए राष्ट्र के निर्माण में सहायता की।
- 1988 (मालदीव): भारत ने तत्काल सैन्य हस्तक्षेप कर तख्तापलट को रोका।
- 2009 (श्रीलंका): भारत की गुप्तचर मदद से एलटीटीई की हार संभव हुई।
- समुद्री डकैती नियंत्रण: भारत हिंद महासागर क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा चुका है।
वैश्विक योगदान, लेकिन राजनीतिक चुप्पी
- भारत ने वैश्विक मंच पर विकासात्मक सहयोग में अग्रणी भूमिका निभाई है:
- कोविड-19 के दौरान वैक्सीन मैत्री
- जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान
- अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना
- डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का साझा करना
- आपदा के समय प्रथम प्रतिक्रिया देने वाला देश
- परंतु, राजनीतिक दृष्टि से भूमिका सीमित रही है।
विकास प्राथमिकता के चलते संकोच
- पिछले दो दशकों में भारत ने आर्थिक वृद्धि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है:
- यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के कार्यकाल में
- भारत अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
- मान्यता बन गई कि वैश्विक संघर्षों में हस्तक्षेप से आर्थिक विकास बाधित हो सकता है।
राजनीतिक रुख लेने से झिझक
- भारत वैश्विक संघर्षों में खुलकर पक्ष लेने से बचता है ताकि:
- पश्चिम और गैर-पश्चिम देशों के साथ संतुलन बना रहे
- किसी पक्ष को नाराज़ न किया जाए (विशेषतः यूक्रेन-रूस युद्ध)
- भारत तटस्थता की नीति अपनाता है, हथियार आपूर्ति से बचता है।
बहुध्रुवीय विश्व में रणनीतिक भ्रम
- आज के बहु-संरेखण (multi-alignment) युग में देश मुद्दों के अनुसार गठबंधन करते हैं
- भारत इस संतुलनकारी नीति पर चलता है, लेकिन इससे इसकी छवि एक निष्क्रिय शक्ति की बन सकती है
- ‘ट्रम्पीय’ (Trumpian) विश्व में जहां हित सर्वोपरि हैं, भारत को अधिक मुखर होना होगा
पुतिन की प्रशंसा: भारत के लिए अवसर
- पुतिन द्वारा भारत की सराहना यह संकेत देती है कि:
- भारत को विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में देखा जाता है
- भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाया
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ मतदान नहीं किया
- भारत इस साख का उपयोग वैश्विक समाधान में प्रमुख भूमिका निभाने के लिए कर सकता है
भारत से वैश्विक अपेक्षाएं
- वैश्विक दक्षिण (Global South) भारत को न्यायपूर्ण वैश्विक शासन की आवाज़ मानता है
- भारत सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता चाहता है, जिसके लिए सक्रिय राजनीतिक भूमिका आवश्यक है
- केवल आर्थिक विकास से वैश्विक नेतृत्व संभव नहीं
रणनीतिक निष्क्रियता के खतरे
- यदि भारत तटस्थ बना रहता है:
- तुर्की, सऊदी अरब, कतर जैसे देश भारत की जगह ले सकते हैं
- वैश्विक शासन सुधार में भारत की भूमिका कमजोर हो सकती है
- बार-बार निष्क्रियता से यह संदेश जा सकता है कि भारत केवल दर्शक है
- आरसेप (RCEP) में शामिल न होना रणनीतिक सतर्कता थी, लेकिन ऐसा बार-बार होने से भारत अलग-थलग पड़ सकता है
नीति परिवर्तन और भूमिका विस्तार का समय
- भारत को चाहिए कि वह:
- एशिया, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए
- क्वाड, ब्रिक्स, I2U2, एससीओ जैसे मंचों का उपयोग शांति और सुरक्षा बढ़ाने के लिए करे
- यूक्रेन-रूस, इस्राइल-गाज़ा जैसे संघर्षों पर अपनी राय स्पष्ट करे
- नैतिक नेतृत्व के साथ रणनीतिक नेतृत्व भी आवश्यक है
संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता
- भारत को चाहिए कि:
- बहु-संरेखण नीति बनाए रखे, लेकिन राजनीतिक रूप से निष्क्रिय न रहे
- पश्चिम और वैश्विक दक्षिण के बीच सेतु की भूमिका निभाए
- गुटनिरपेक्षता की परंपरा को सक्रिय कूटनीति में बदले
- अंतरराष्ट्रीय मानकों को बनाने में नेतृत्व करे, केवल प्रतिक्रिया देने तक सीमित न रहे
निष्कर्ष: भविष्य को आकार देने में अग्रणी भूमिका निभाए भारत
- ‘ट्रम्पीय’ विश्व में निष्क्रिय कूटनीति पर्याप्त नहीं
- भारत को गुटनिरपेक्षता को नए संदर्भ में परिभाषित करना होगा – सक्रिय तटस्थता
- तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, सामरिक स्थिति और वैश्विक साख के साथ भारत को केवल अपने हितों की रक्षा नहीं, बल्कि वैश्विक घटनाओं को आकार देना चाहिए
- तभी भारत एक अग्रणी शक्ति के रूप में उभर सकता है, न कि केवल संतुलनकारी के रूप में
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